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कविता

जलाटा की डायरी

असीमा भट्ट


 
बोस्निया युद्ध पर लिखी एक मासूम बच्ची जलाटा की डायरी पढ़कर

"युद्ध का मानवता से कोई लेना-देना नहीं!
मानवता के साथ कोई संबध नहीं..."
कहती है छोटी-सी बच्ची 'जलाटा' .
वह युद्ध का मलतब तक नहीं समझती
सिर्फ इतना जानती है कि -
युद्ध एक बुरी चीज है
झूठ बोलने की तरह
युद्ध मतलबपरस्त लोगों की साजिश है
जो आदमी को आदमी से
इनसान को इनसान से
धर्म, नस्ल और देश के नाम पर लड़वा रहे हैं
इसमे सबसे अधिक नुकसान
बच्चों को होता है
जलाटा जैसी कितने ही मासूम बच्चे हो जाते हैं बेघर और बेपनाह
जलाटा लिखती है -
"हमारे शाहर, हमारे घर, हमारे विचारों में और हमारे जीवन में युद्ध घुस चुका है
युद्ध के ऊपर पानी की तरह पैसे बहाने वालों
तुम बच्चों के खून में भय का बीज 'बो' रहे हो
बच्चों की खुशी और उसके सपनों का सौदा करने वालों
युद्ध तुम्हारी खुराक बन चुका है...
युद्ध कराए बगैर तुम जिंदा नहीं रह सकते!
जो देश, दुनिया में सबसे अधिक भयभीत हैं!
वही भय का कारोबार कर रहे है
ऐसे कायर और डरपोक लोगो को समाज से बाहर उठाकर कूड़े में फेंक देना चाहिए...
जलाटा, तुम सही कहती हो कि -
"राजनीति बड़ों के हाथ में है
लेकिन मुझे लगता है बच्चे उनसे बेहतर निर्णय ले पाते..."
यह दुनिया बेहतर और खूबसूरत होती...
काश! कि सचमुच ऐसा हो पता जलाटा !
और तुम्हारा सपना कि एक दिन तुम्हें तुम्हारा बचपन वापिस मिलेगा
तुम्हारी उम्मीद उस बच्चे की तरह है जो माँ के गर्भ में आँखें बंद किए सो
रहा है अभी...
सुंदर सपना देखते हुए

जलाटा,
देख लेना
एक दिन तुम्हारा और दुनिया के
तमाम बच्चों का सपना पूरा होगा
एक दिन सब ठीक हो जाएगा !
बच्चे खेलेंगे बेखौफ
दौडेंगे...,
भागेंगे चारों दिशाओं में
पतंग की तरह
पूरी हिम्मत के साथ
गाएँगे खुशी के सबसे सुंदर संगीत
सबसे सुंदर दिन के लिए
क्योंकि
बच्चे
मासूम होते हैं
छल-कपट, धोखा और लालच से
दूर
और सुना है सच्चे दिल से निकली दुआएँ
कभी खाली नहीं जातीं
तुम्हारे सपने सच होगें जलाटा !
जरूर होंगे
आमीन !
 
*' जलाटा की डायरी ' १९९४ में पढ़ी थी। यह मासूम बच्ची बोस्निया युद्ध के दौरान लंबे समय तक भूखी-प्यासी एक तलघर में बंद रही थी।


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